Gazalen


1) ग़ज़ल (1222-1222-1222)

भला कब मैं निशाने पर नहीं आया
मेरे हाथों में पर पत्थर नहीं आया

कहीं ठहरे नहीं फिर भी शिकायत हैं
सफ़र में ख़ुशनुमा मंज़र नहीं आया

मैं तौबा दोस्ती से कर तो लूँ लेकिन
हमेशा पीठ पे ख़ंजर नहीं आया

बुढ़ापे में हुआ ऐसा भी तो अक्सर
पहुँच के घर लगा की घर नहीं आया

सहा चुप-चाप तूफ़ानों को क्यूँ आतिश
कभी आँखों में क्यों सागर नहीं आया
आतिश इंदौरी

2) ग़ज़ल (2122-1212-22)

राह जब भी तवील हो जाए
इक क़दम एक मील हो जाए

लटके रहना सलीब पर तय है
ज़िन्दगी जब वकील हो जाए

ख़ुशनुमा ख़्वाब आयेगा तय हो
दिन कभी जब तवील हो जाए

एक मुद्दत से आस हैं आतिश
इश्क़ उसको भी फील हो जाए

हौसला गर जवाँ रहे आतिश
उम्र फिर तो तवील हो जाए
आतिश इंदौरी

3) ग़ज़ल (2122-1212-22)

पुरखों का हम मकान बेच आए
धरती और आसमान बेच आए

वो उड़ानों की बात करते हैं
जो परिँदे उड़ान बेच आए

यूँ ग़ुलामी ख़रीद लाये वो
जो जो अपनी ज़बान बेच आए

जात तलवार की बताई यूँ
लोग मूँठ और मियान बेच आए

क्यूँ शिकायत हो धूप से आतिश
अपना जब सायबान बेच आए
आतिश इंदौरी

4) ग़ज़ल (2122-1122-1122-22)

माँ के रहने से ही पत्थर पे असर होता है
झोपड़ी हो या क़िला तब कहीं घर होता है

तरबतर कोई दुआओं से अगर होता हैं
हर किसी के लिये वो शख़्स शजर होता है

तबसिरा फूल नहीं करता कभी ख़ुश्बू का
इश्क़ एलान नहीं करता अगर होता है

गुल खिला होता तो फिर वाह निकलना तय थी
वाह तो मिलती ही हैं शेर अगर होता है
आतिश इंदौरी

5) ग़ज़ल (2122-1122-1122-22)

कोशिशें कर लो मैं बादल नहीं होने वाला
बरसूँ बे-वज्ह यूँ पागल नहीं होने वाला

शर्त ये है कि हमारे ही तरह हो जाओ
मैं तो सोना हूँ मैं पीतल नहीं होने वाला

ख़्वाब टूटा तो नया ख़्वाब दिखाते हो क्यूँ
ख़्वाब ये भी तो मुकम्मल नहीं होने वाला

चाहिए पेड़ उगाने के अलावा भी कुछ
बाग़ पेड़ों से तो जंगल नहीं होने वाला

आसमाँ का ये भरम तोड़ दिया आतिशने
की करो कुछ भी वो सम-तल नहीं होने वाला
आतिश इंदौरी

6) ग़ज़ल (2122-1122-1122-22)

गर वो दरिया नहीं तो तय हैं समंदर होगा
दर्द आँखों में नहीं तो कहीं अंदर होगा

बाहरी रूप अलग अस्ल तो अंदर होगा
प्यास बुझती नहीं तो तय हैं समंदर होगा

दूसरा ख़ुश हैं तो वो ख़ुश हैं यूँ तबियत होगी
प्यार जो करता हैं वो मस्त कलंदर होगा

कोई मायावी नहीं हैं न कोई बाज़ीगर
जीत कर हार रहा हैं तो सिकंदर होगा
आतिश इंदौरी

7) ग़ज़ल (1222-1222-122)

समंदर कितना गहरा देखना है
उसे अब कह के दरिया देखना है

शजर से रूठ कर ख़ुद ही गया था
कहाँ पहुँचा वो पत्ता देखना है

यूँ चीख़ूँगा भले आवाज़ जाए
ज़माना कितना बहरा देखना है

हज़ारों में या लाखों में बिकेगा
है ईमां कितना महँगा देखना है

रहा जो सिर्फ़ मेरा ज़िंदगी भर
रहा उसका मैं कितना देखना है
आतिश इंदौरी

8) ग़ज़ल (2122-1212-22)

पेड़ की थोड़ी छाँव ले आना
शह्र लौटो तो गाँव ले आना

मुश्किलें सामने से ले आओ
शेष सब हल्के पाँव ले आना

बात करनी है गर ग़रीबी की
राजा को नंगे पाँव ले आना

हो मज़ेदार सो गुज़ारिश है
राह में धूप छाँव ले आना
आतिश इंदौरी

9) ग़ज़ल (2122-1122-1122-22)

वो कहीं जाते नहीं दिल में जगह पाते हैं
जो सलीक़े से दुआ दे के बिछुड़ जाते हैं

दिल दुआ करता हैं की घर को सलामत रखना
जब भी बेटे बहू के बोल बिगड़ जाते हैं

वक़्त लगता हैं मगर फिर से बहार आयेगी
दौर पतझड़ का हो तो बाग़ उजड़ जाते हैं

सो परिंदों ने भी दूरी बना ली हैं 'आतिश'
तीर लोगों की कमानों पे जो आ जाते हैं
आतिश इंदौरी

10) ग़ज़ल (2122-1122-1122-22)

कुछ फ़सादी बने और कुछ से जवानी गुजरी
ढेर किरदार थे सो एक कहानी उतरी

कट गया वक़्त वो जब सर से ग़रीबी गुजरी
हीरे कुछ निकले जो चहरों से सियाही उतरी

छोटी सी बात पे बच्चों ने कहा मर जाओ
माँ हँसी ख़ूब मगर दिल से सुनामी गुजरी

फ़ैसला इश्क़ का इस तरह सुनाया उसने
बोला की साथ तुम्हारे यूँ तो अच्छी गुजरी

कोई गाली दे भले में उसे गुल देता
हूँ
ज़िंदगी अच्छे से इस वज्‍ह से मेरी गुजरी
आतिश इंदौरी


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